मंगलवार, 12 जुलाई 2011




ओ मेरी प्रियतमा ,



जीवन हैं तुझ बिन एक सजा ,
हर बात मन की में कहूँ केसे तुम्हे कभी तो बिन बोले समझो कुछ हां ये ही की तुम बिन कोई नहीं दूजा |

1 टिप्पणी:

  1. ऐ मेरी ख्वाबे ताबीर
    हर ख्वाब को ताबीर नहीं मिलती ये जानता हूँ फिर भी
    हर पल तेरी आरजू किए जाता हूँ.
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