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मंगलवार, 12 जुलाई 2011
ओ मेरी प्रियतमा ,
जीवन हैं तु
झ बि
न एक सजा
,
हर बात मन की में कहूँ केसे तुम्हे
कभी तो बिन बोले समझो कुछ
हां ये ही की तुम बिन कोई नहीं दूजा |
मंगलवार, 5 जुलाई 2011
कभी
तो खुल के बरस अब्र ऐ मेहरबान की तरह ,
मेरा
वजूद हैं जलते हुए मकान की
तरह
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